जल जीवन मिशन में गड़बड़ी: हिण्डोलाखाल क्षेत्र के गांवों में महीनों से पानी की एक बूँद नहीं
भारत सरकार द्वारा वर्ष 2019 में शुरू किया गया जल जीवन मिशन ग्रामीण भारत के प्रत्येक घर तक नल के माध्यम से स्वच्छ और पर्याप्त जल पहुँचाने की एक महत्वाकांक्षी योजना है। इसका उद्देश्य था कि वर्ष 2024 तक सभी ग्रामीण घरों को ‘हर घर जल’ उपलब्ध हो। इस योजना के तहत उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में भी अनेक परियोजनाएं शुरू की गईं। लेकिन जमीनी हकीकत इन दावों से कोसों दूर है। इसका जीता-जागता उदाहरण है टिहरी जनपद का हिण्डोलाखाल क्षेत्र, जहां के कई गांवों में महीनों से पानी की एक बूँद तक नहीं पहुंची है।
हालात बदतर: प्यासे गांव और ठप नल
हिण्डोलाखाल क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गांवो में जल जीवन मिशन के तहत पाइपलाइन बिछाई गई, टैंक बनाए गए और लाखों की लागत से मोटरें व साजोसामान खरीदा गया। लेकिन दुर्भाग्यवश यह सब कागज़ों तक ही सीमित रह गया। नलों से पानी नहीं आता, टैंक सूने पड़े हैं, और मोटरें कब की खराब हो चुकी हैं या लगाई ही नहीं गईं। ग्रामीणों का कहना है कि उन्हें जल जीवन मिशन का लाभ एक दिन के लिए भी नहीं मिला।
मुख्य बाजार हिण्डोलाखाल में भी लगातार पानी की किल्लत बनी रहती है।
ब्लॉक मुख्यालय होने के बावजूद यहाँ की ये दुर्दशा दयनीय है।
भ्रष्टाचार की बू: किसने खाया पानी?
गांववालों का आरोप है कि जल जीवन मिशन के कार्यों में भारी भ्रष्टाचार हुआ है। पाइपलाइनें बगैर गुणवत्ता की बिछा दी गईं, कई जगह अधूरी खुदाई कर काम बंद कर दिया गया, और सामग्री की खरीदी में मनमानी दरें लगाई गईं। निर्माण कार्यों में स्थानीय निगरानी की व्यवस्था न होने के कारण अधिकारी, ठेकेदार और अभियंता मिलीभगत कर करोड़ों की योजनाओं को चूना लगा गए।
ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहां एक ही गांव में दो-दो बार पाइपलाइन डाली गई, लेकिन दोनों बार पानी नहीं आया। गांववासियों का कहना है कि जब उन्होंने शिकायत की, तो अधिकारियों ने "तकनीकी दिक्कत" और "पंप खराब होने" का हवाला देकर टाल दिया।
महिलाएं सबसे अधिक प्रभावित
गांवों में पानी की अनुपलब्धता से सबसे ज्यादा असर महिलाओं और बच्चियों पर पड़ा है। उन्हें रोज़ाना कई किलोमीटर दूर पैदल चलकर पानी लाना पड़ता है। इससे उनके स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक जीवन पर गहरा असर पड़ा है। स्कूल जाने की उम्र की बच्चियां घर का पानी ढोने में व्यस्त हैं, और महिलाएं खेती और अन्य काम छोड़कर सिर्फ पानी लाने में दिन बिता रही हैं।
लोकल प्रशासन की भूमिका पर सवाल
यह प्रश्न उठता है कि स्थानीय प्रशासन और पंचायतों की क्या भूमिका रही? क्या उन्होंने समय रहते निरीक्षण किया? क्या उन्होंने ठेकेदारों की मनमानी पर कोई कार्रवाई की?
ग्रामीणों का आरोप है कि शिकायतों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई। कई बार ज्ञापन देने और जिला मुख्यालय में धरना प्रदर्शन करने के बाद भी न तो कोई जांच हुई और न ही दोषियों पर कोई कार्यवाही। इससे यह संदेह और भी मजबूत होता है कि प्रशासनिक मिलीभगत इस गड़बड़ी में शामिल है।
भूजल संकट और जलवायु प्रभाव
हिण्डोलाखाल जैसे क्षेत्रों में पानी की किल्लत का एक बड़ा कारण भूजल स्तर में गिरावट और जलवायु परिवर्तन भी है। लगातार कम होती वर्षा, जंगलों की कटाई और पारंपरिक जल स्रोतों की उपेक्षा ने समस्या को और विकराल बना दिया है।
यदि जल जीवन मिशन को ठीक से लागू किया जाता, तो यह जल संकट को काफी हद तक नियंत्रित कर सकता था। लेकिन जब योजना की नींव ही भ्रष्टाचार पर टिकी हो, तो उसका लाभ जनता तक पहुँचना लगभग असंभव हो जाता है।
समाधान क्या हो?
स्वतंत्र जांच आयोग का गठन कर जल जीवन मिशन के तहत हुए कार्यों की निष्पक्ष जांच करवाई जानी चाहिए।
दोषी अधिकारियों और ठेकेदारों पर सख्त कार्यवाही होनी चाहिए।
स्थानीय ग्राम पंचायतों और लोगों को निगरानी समिति में शामिल कर पारदर्शिता सुनिश्चित की जानी चाहिए।
पारंपरिक जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने के लिए विशेष अभियान चलाए जाने चाहिए।
योजनाओं की जमीनी हकीकत की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए ताकि भविष्य में इस तरह की गड़बड़ियां न हो।
निष्कर्ष
जल जीवन मिशन एक महत्वपूर्ण और जनहितकारी योजना है, लेकिन हिण्डोलाखाल जैसे क्षेत्रों में इसकी विफलता ने सरकार की मंशा और कार्यप्रणाली दोनों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यदि यह स्थिति बनी रही तो ग्रामीण भारत को "हर घर जल" का सपना देखने में कई और दशक लग सकते हैं। अब समय आ गया है कि जनता जागरूक बने, जवाब मांगे और अपने अधिकारों के लिए खड़ी हो। जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी, तब तक नल सूखे ही रहेंगे और गांव प्यासे।
No comments:
Post a Comment