भारत सदियों से एक ऐसा देश रहा हैं जहाँ हर प्रकार के लोगो को समाहित करने का माद्दा है
भारत ने न कभी किसी देश पर इस उद्देश्य से आक्रमण किया की उसकी जमीन पर कब्ज़ा किया जाए और न कभी इस उद्देश्य से की किसी देश को आगे बढ़ने से रोका जाए भारत ने हमेशा से ही वसुधैव कुटुंबकम की अपनी नीति को अपनाया है और हमेशा ही उसपर कायम रहा है इतिहस गवाह है की जिसने भी यहाँ आकर यहाँ के रीति रिवाजो और यहाँ की संस्कृति को मिटाना चाहा या तो वो खुद मिट गया या फिर यहीं की संस्कृति में रम गया
भारत एक समागम का देश है जो ठीक उस फूलों के गुच्छे की तरह है जो कई तरह के फूलों को खुद में समाये हुए है
अपनी भिन्नताओ और अनेकता में एकता के लिए ही भारत को जाना जाता है
पर आज ऐसा दौर आ गया है जब हमने अपने सब नैतिक मूल्यों को खो दिया है हम इतने स्वार्थी हो गए हैं की जो हमारे स्वार्थ का कार्य न हो उसे करने के लिए हजार बार सोचते हैं चाहे वो कार्य कितना ही देशहित में महत्वपूर्ण और आवशयक क्यों न हो
स्वच्छता और समानता का जो भाव हमारे दिलो में होता था वो कहीं खो सा गया है एक दूसरे से निस्वार्थ मिलने की भावना कहीं बिखर के रह गयी है
आज हम अपने आजादी के महान शहीदों को सिर्फ स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस पर याद करते हैं उनकी कुर्बानियों को भूल गये हैं
हमने अपने सभी नैतिक मूल्यों का त्याग कर दिया है
भारत को विकसित और संपन्न सिर्फ आर्थिक रूप से बनाना ही नहीं बल्कि उसकी जो सामाजिक समरसता है उससे भी बरकार रखना है
जब हम अपने नैतिक मूल्यों को सही से समझ पाएंगे तब जाके ही कहीं एक समृद्ध विकसित सपनो के भारत का निर्माण हो पायेगा
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राज बिष्ट
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