Friday, November 18, 2022

देश को कैसे खा रहा है आरक्षण रुपी दानव

 आरक्षण ?? इस शब्द को सुनते ही दो तरह के लोगो के चेहरे सामने उरने लगते हैं। एक वो जो कहते हैं आरक्षण का होना  सही नही है और दूसरे वो जो कहते हैं आरक्षण का होना सही है। आज का आरक्षण  दो धारी तलवार की तरह है । और इस वक़्त हम जिस धार का प्रयोग कर रहे हैं वो पूर्ण  से नुकसान देने वाली है। सही धार पकड़ने के लिए आईये इसे समझते हैं।

पहले ये जान लेते हैं कि आरक्षण है क्या??
आरक्षण का सीधे शब्दों में कहूँ तो इसका मतलब है किसी विशेष प्रकार की छूट। वर्तमान में इसे किसी विशेष समुदाय या जातियों को दिया जाता है।
बाबा साहेब ने संविधान का निर्माण किया। उन्होंने संविधान निर्माण करते हुए ये साफ लिखा है कि सब एक समान हैं कोई बड़ा या छोटा नहीं। किसी की जाती बड़ी या छोटी नही और न ही किसी का धर्म बड़ा या छोटा है।
सबको समान रूप से एक इंसान मनाने वाले बाबा साहेब कैसे किसी को जाती और धर्म के नाम पर आरक्षण देने की वकालत कर सकते थे।


बाबा साहेब अंबेडकर ने संविधान में आरक्षण जोड़ा इसलिए कि जो पिछड़े लोग हैं और पिछड़े लोग वो जो आर्थिक रूप से पिछड़े हैं। उन्हें सबकी तरह एक समान स्तर तक लाया जा सके और उन्हें समाज मे बराबरी पर लाने के लिए आर्थिक रूप से आरक्षण के रूप में सहायता मिले। किन्तु हुआ ऐसा नही।

आरक्षण को जातिगत फायदे के लिए और वोटों के लिए बांट दिया गया। एकसमान देश के एक जैसे लोग बँट गए जाती और धर्म में।कोई अल्पसंख्यक आरक्षण में आ गए तो कोई अनुसूचित जाति तो कोई अनुसूचित जनजाति के रूप में समाज मे बँट गए। सब एक समान हैं वाला नारा जाती और धर्मो में बंट गया।
आज आरक्षण को जाती और धर्म के आधार पर दिया जाना किसी भी आधार पर उचित नही ठहराया जा सकता है। हम सब मिलकर एक समृद्ध और विशाल भारत बनाने का सपना देखते हैं और उस सपने को साकार करने के लिए होनहार लोगो की आवश्यकता होगी परन्तु आरक्षण नाम का कीड़ा उन होनहारों के रास्ते मे दीवार बनकर बैठा है। इस बात को इस तरह समझते हैं कि किसी गरीब सामान्य वर्ग के परिवार का कोई होनहार बालक किसी प्रतिस्पर्धा में 80 प्रतिशत अंक प्राप्त करता है  और उसकी प्रतिभाग करने की शुल्क 500 रुपये तक होती है। किंतु उसको नही चुना जाता है। परंतु किसी तथाकथित जातिगत या विशेष समुदाय के संपन्न परिवार के बालक को 60 प्रतिशत लाने पर भी उस प्रतिस्पर्धा में चुन लिया जाता है और उसकी प्रतिस्पर्धा में भाग लेने का शुल्क 250 रुपये मात्र होता है।



अब जो बालक सिर्फ इसलिए नही चुना जाता है कि वो सामान्य वर्ग से है उसने मेहनत भी ज्यादा की है  शुल्क भुगतान भी  ज्यादा किया है अंक भी अधिक प्राप्त किये हैं तब सोचिये उसकी पूर्ण मेहनत करने के बाद भी असफलता हासिल होने पर उसकी मनोदशा उसे किस दिशा में ले जाएगी। इसी तरह हम कई होनहार प्रतिभाओं को खो देते हैं।
सिर्फ जातिगत और समुदायिक आरक्षण के आधार पर हम एक होनहार प्रतिभा को नही चुन पाते हैं। जबकि आर्थिक आधार पर वो उन आरक्षित लोगो से बहुत पीछे है जो तथाकथित रूप से पिछड़े हुए हैं।
मैं ये नही कहता हूं कि आरक्षण नही देना चाहिए बस ये कहना चाहता हूं की आरक्षण जाति या समुदाय को नही उन लोगो को दिया जाना चाहिए जो वाकई इसके हकदार हैं। जो आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं उन्हें उबारने के लिए आरक्षण होना चाहिए। एक देश मे सब एक समान हैं तो किसी जाति और समुदाय के लिए आरक्षण कैसे हो सकता है। उस समय जब आरक्षण को संविधान में शामिल किया गया हो सकता है उस वक़्त के हिसाब से वो सही रहा हो किन्तु  आज के वक्त में इसे किसी भी स्तर पर सही नही कह सकते हैं हमे आरक्षण नीति को वक़्त की मांग के साथ बदलना होगा और इसे जातिय और समुदायिकता से उखाड़ फ़ेंककर गरीब और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगो की सही पहचान कर उन्हें मुहैया कराना होगा।
आरक्षण का प्रयोग सही तरीके से और सही लोगों के उपयोग में लाना होगा। इससे जो सम्पन्न लोग हैं और आरक्षण ( जातीय या सामुदायिक आरक्षण) का फायदा पीढ़ी दर पीढ़ी सम्पन्न होने के बाद भी उठा रहे हैं उनसे हटाकर गरीब और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगो को देने से देश की दिशा और दशा दोनों में सुधार होगा। बाबा साहेब अम्बेडकर के सपने ( सब समान हों ) को साकार करना है तो जातिगत और समुदायिक आरक्षण को बदलकर आर्थिक आरक्षण की नीति में लाना होगा। एक दूरदृष्टि और सही निर्णय की सख्त आवश्यकता है अगर हम ये करने में साकार हो जाते हैं तो भारत को आगे बढ़ने या बल्कि यूँ कहें कि विश्वगुरु बनने की दिशा में बढ़ने से कोई नही रोक सकता है।
राज बिष्ट।

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