जन्म 1 फरवरी 1914
अवतार किशन हंगल, यानी ए. के. हंगल के पास कभी स्टार का रुतबा नहीं रहा। वह हीरो या विलेन न होकर एक चरित्र अभिनेता थे। 55 की उम्र में फिल्म लाइन में एंट्री मारने वाले हंगल को उनकी उम्र की वजह से ज्यादातर बड़े बुजुर्गों के ही किरदार निभाने को मिले। पर्दे पर पिता, दादा, चाचा, दोस्त नौकर के तमाम किरदारों में मजबूर और निरीह दिखने वाले हंगल की असल जिंदगी भी आखिरी वक्त में कुछ वैसी ही हो चली थी। उन्होंने बॉलिवुड में नाम तो बहुत कमाया लेकिन पैसा नहीं कमा सके। अपनी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने का संघर्ष करते हंगल इस दुनिया से 95 की उम्र में रुखसत हो लिए। बॉलिवुड के इस शोर-शराबे और चमक दमक में हंगल के गुजर जाने का सन्नाटा कहीं दब गया है, शायद तभी उनके आखिरी सफर पर बॉलिवुड के बड़े नामों की मौजूदगी नदारद थी।
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के सियालकोट के एक कश्मीरी पंडित परिवार में 1917 में जन्मे ए. के. हंगल ऐक्टर बनने से पहले एक बेहतरीन टेलर थे। अपनी आत्मकथा 'लाइफ ऐंड टाइम्स ऑफ ए. के. हंगल' में उन्होंने बताया है कि मेरे पिता के एक दोस्त ने मुझे दर्जी बनने का सुझाव दिया था। खास बात ये है कि शुरू में हंगल को बटन टांकना भी नहीं आता था। बाद में नवंबर 1949 में वह अपनी पत्नी सहित मुंबई यानी भारत पहुंचे। नरीमन रोड की एक टेलरिंग की दुकान में नौकरी भी की।
हंगल साहब की पहली फिल्म थी, बासु भट्टाचार्य निर्देशित 1966 में बनी फिल्म 'तीसरी कसम'। रंगमंच पर हंगल के एक्टिंग से प्रभावित होकर मशहूर डायरेक्टर ऋषिकेश मुखर्जी ने उन्हें अपनी फिल्मों में मौका दिया। 'शोले' में अंधे 'इमाम साहब' का किरदार और उनके डायलॉग 'इतना सन्नाटा क्यों है भाई' को कौन भूल सकता है। 'शौकीन' के रंगमिजाज बुजुर्ग इंदरसेन उर्फ एंडरसन के रोल में हंगल बेमिसाल थे। अवतार, शौकीन, गुड्डी, नमक हराम, बावर्ची, अर्जुन, शौकीन, 7 हिंदुस्तानी में अपनी एक्टिंग से अलग पहचान बनाने वाले हंगल ने 45 साल लंबे करियर में 200 से अधिक फिल्मों में काम किया। हाल के सालों में हंगल साहब लगान, ये दिल मांगे मोर जैसी फिल्मों में दिखे। अमोल पालेकर निर्देशित पहेली (2005) हंगल साहब की आखिरी फिल्म थी।
2006 में इन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। वर्ष 1966 में इन्होंने हिंदी सिनेमा में कदम रखा और 2005 तक 225 फ़िल्मों में काम किया। राजेश खन्ना के साथ उन्होंने 16 फ़िल्में की थी। हंगल साहब उर्दू भाषी थे। उन्हें हिंदी में स्क्रिप्ट पढ़ने में परेशानी होती थी। इसलिए वे स्क्रिप्ट हमेशा उर्दू भाषा में ही मांगते थे।
भारत की आज़ादी की लड़ाई में भी इनकी भागीदारी थी। 1930-47 के बीच स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे। दो बार जेल भी गए।
एके हंगल ने “लाइफ एंड टाइम्स ऑफ एके हंगल” नामक अपनी आत्मकथा भी लिखी है, जहां वे पेशावर, कराची में जीवन के प्रारंभिक वर्षों और मुंबई में संघर्ष के वर्षों के बारे में बात करते हैं।
टीवी सीरियल में उपस्थिति
1997 में बॉम्बे ब्लू
1998 में जीवन रेखा
1986 में मास्टरपीस थिएटर : लार्ड माउंटबेटन
1996 में चंद्रकांता
1993-94 में जबान संभाल के में छोटी भूमिका
2004-05 में होटल किंग्सटन में छोटी भूमिका
2012 में धारावाहिक कलर्स चैनल के धारावाहिक मधुबाला में विशेष उपस्थिति।
हंगल साहब लम्बे समय से बुढ़ापे की बीमारियों से पीड़ित रहे। बॉलीवुड के सबसे वयोवृद्ध अभिनेता ए. के. हंगल का 26 अगस्त 2012 को सुबह नौ बजे के क़रीब मुंबई के आशा पारेख अस्पताल में निधन हो गया था। 95 साल के हंगल को 16 अगस्त को अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 13 अगस्त को हंगल गिर गए थे। पीठ में चोट लगने और कूल्हे की हड्डी टूटने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ उनकी सर्जरी हुई। सर्जरी होने के बावजूद उनती सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ। बाद में पता चला कि उन्हें सीने में दर्द और सास लेने में तकलीफ़ है। इसके बाद उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया, लेकिन उनकी सेहत में कोई सुधार नहीं हुआ।
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