मिस्टर इंडिया की सक्सेस पार्टी में एक नई फिल्म अनाउंस हुई थी, जिसे शेखर कपूर डायरेक्ट करने वाले थे। बोनी कपूर फिल्म के प्रोड्यूसर थे, फिल्म का नाम रखा गया रूप की रानी चोरों का राजा। जैसे आज के समय में अदिपुरुष और ब्रह्मास्त्र को रिलीज से पहले एक बड़ी फिल्म के तौर पर देखा जा रहा था सेम उसी तरह की उम्मीद दर्शको को इस फिल्म से थी।उस जमाने में बड़ी फिल्मे दो ढाई करोड़ में बन जाती थी पर इस फिल्म का बजट बनते बनते आठ नौ करोड़ पहुंच गया था। फिल्म को बनने में भी छः साल लग गए। शेखर कपूर ने अपनी आदत के मुताबिक फिल्म को आधे में ही छोड़ दिया, मजबूरन बोनी कपूर को शेखर के असिस्टेंट डायरेक्टर सतीश कौशिक से फिल्म डायरेक्ट करवाना पड़ी। फिल्म सबने मिलकर बहुत दिल से बनाई थी पर ये महत्वाकांक्षी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर चारो खाने चित हो गई।
सतीश कौशिक मूल रूप से एक एक्टर थे, कई यादगार रोल कर चुके थे।एक और रोल वो करने वाले थे डेविड धवन की अगली फिल्म में। फिल्म थी राजा बाबू,और सतीश कौशिक के हुनर को देखते हुए डेविड धवन ने उन्हे नंदू का रोल दिया था। जब रूप की रानी चोरों का राजा फ्लॉप हुई तो फिल्म से जुड़े सभी लोगो की जिंदगी पर फर्क पड़ा, बोनी कपूर लगभग सड़क पर आ चुके थे। उस वक्त सतीश कौशिक को लगा कि नंदू का रोल करने के लिए ये सही वक्त नही है। वो डेविड धवन के पास गए और कहा कि नंदू बहुत कार्टूनिश कैरेक्टर है, लाउड है, अगर मैं अभी ये रोल करता हू तो लोग कहेंगे कि डायरेक्टर के तौर पर सतीश फ्लॉप हुआ तो ये दिन आए है कि ऐसे रोल करने पड़ रहे है।
डेविड धवन के हाथ में उस वक्त कई फिल्मे थी, उनमें से एक थी साजन चले ससुराल जिसमे गोविंदा के दोस्त मुत्थु स्वामी का रोल शक्ति कपूर करने वाले थे। शतीश कौशिक की परेशानी सुनकर डेविड ने शक्ति कपूर से मुत्थु स्वामी का कैरेक्टर छोड़कर नंदू का कैरेक्टर करने के लिए कहा। शक्ति कपूर के लिए दोनो ही रोल उनकी इमेज के खिलाफ थे पर नंदू मुत्थु से ज्यादा कार्टूनिस था और चैलेंजिंग भी। शक्ति कपूर ने इस चैलेंज को एक्सेप्ट कर लिया और मुत्थु का रोल छोड़कर नंदू का रोल करने को राजी हो गए। कुछ साल बाद एक एक करके दोनो फिल्मे रिलीज हुई, शक्ति कपूर ने नंदू के जरिए अपनी रेंज दिखाई, काबिलियत दिखाई इंडस्ट्री को, और मुत्थु के रोल में सतीश कौशिक ने जान डाल दी। दोनो को अपने अपने रोल के लिए फिल्मेयर अवार्ड मिला था। दोनो कैरेक्टर आज कल्ट है, जुबान पर चढ़े है। सिनेमा में कई ऐसे किरदार है जो अपने एक्टर खुद ढूंढते है, वो पहुंच जाते है किसी तरह से उसके पास जो उसे निभाने लायक होता है, इसी वजह से कुछ किरदार ऐसे है जिन्हे कभी कोई दूसरा निभा ही नही सकता। आपको क्या लगता शक्ति कपूर मुत्तु स्वामी के रोल में, और सतीश कौशिक नंदू के रोल में कैसे लगते?
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