CAA लागू करने पर विदेशी मीडिया की मोदी पर टिप्पणी।
CAA लागू करने पर विदेशी मीडिया की मोदी पर टिप्पणी।
वर्ष 2019 में बने इस क़ानून को चार साल बाद मोदी सरकार ने लागू करने का फ़ैसला किया है.
जब ये क़ानून बना था तो देश के कई हिस्सों में इसे लेकर विरोध प्रदर्शन हुआ था.
सामाजिक कार्यकर्ता, मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली संस्थाएं और समाज के एक तबके ने इस क़ानून को भारतीय संविधान की आत्मा के ख़िलाफ़ बताते हुए इसका विरोध किया था.
अब जब ये चुनावी साल में लागू किया जा रहा है तो विपक्षी पार्टियां इसे चुनावी दांव बता रही हैं.
सीएए को लेकर ना सिर्फ़ देश में बल्कि विदेशों में भी काफ़ी चर्चा है.
विदेशों में इसे कैसे देखा जा रहा है और इसकी कैसी चर्चा है, यही समझने के लिए हमने अंतराष्ट्रीय अख़बारों में इसकी कवरेज पर नज़र डाली.
अनुसार, अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र ने इस क़ानून पर चिंता ज़ाहिर की है.
संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि ये ‘क़ानून मूल रूप से भेदभाव करने वाला’ क़ानून है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त के कार्यालय के एक प्रवक्ता ने रॉयटर्स से कहा, "जैसा कि हमने 2019 में कहा था, हम चिंतित हैं कि भारत का नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 (सीएए) मूल रूप से भेदभावपूर्ण है और भारत के अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों का उल्लंघन है."
उन्होंने ये भी कहा कि हम नागरिकता संशोधन नियम जिसकी अधिसूचना जारी की गई है, उसे पढ़ रहे हैं और हमें देखना है कि ये अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार के नियमों के अनुरूप है या नहीं.
अमेरिका ने भी भारत के नए नागरिकता क़ानून को लेकर शंका ज़ाहिर की है.
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, "हम 11 मार्च को जारी किए गए नागरिकता संशोधन नियम की अधिसूचना को लेकर चिंतित हैं. हम बारीकी से देख रहे हैं कि यह अधिनियम कैसे लागू किया जाएगा."
“धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान और सभी समुदायों के लिए क़ानून के तहत समान व्यवहार मौलिक लोकतांत्रिक सिद्धांत हैं.”
रॉयटर्स लिखता है कि समाजिक कार्यकर्ता ये मानते हैं कि नेशनल सिटिजन रजिस्टर के साथ इस क़ानून को मिलाकर भारत के 20 करोड़ मुसलमानों से भेदभाव किया जाएगा, कुछ को ये भी डर है कि इससे कई ऐसे मुसलमान जो सीमा के पास के राज्यों में रहते हैं और जिनके पास दजस्तावेज़ नहीं हैं, उनकी नागरिकता जा सकती है.
मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस क़ानून के नोटिफ़ाई होने पर कहा, “सीएए धर्म के आधार पर भेदभाव को जायज़ बनाता है. यह अधिनियम अपनी संरचना में ही भेदभाव वाला है. ये क़ानून श्रीलंका के मुसलमानों और तमिल के प्रति भेदभाव करता है. नेपाल और भूटान जैसे देशों के प्रवासियों को नागरिकता से दूर रखता है.”
“साल 2019 में जब शांतिपूर्वक विरोध हो रहा था तो सुरक्षा एजेंसियों ने अत्यधिक बल का इस्तेमाल किया, लोगों को हिरासत में लिया गया. हम अपील करते हैं कि प्रशासन लोगों की अभिव्यक्ति की आज़ादी का सम्मान करे.”
No comments:
Post a Comment