उत्तराखंड की राजनीति में उत्तराखंड क्रांति दल (यूकेडी) का नाम ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण रहा है। यह वही पार्टी है जिसने उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए सबसे पहले आवाज उठाई थी और जनता के बीच एक क्षेत्रीय पहचान बनाई थी। लेकिन राज्य गठन के बाद, यूकेडी की राजनीतिक ताकत लगातार कमजोर होती गई और पिछले कई विधानसभा चुनावों में यह पार्टी हाशिए पर सिमट कर रह गई। अब सवाल यह है कि क्या 2027 के विधानसभा चुनाव में यूकेडी फिर से उभार ले पाएगी? आइए इस लेख में इसके संभावनाओं, चुनौतियों और रणनीतियों का विश्लेषण करें।
यूकेडी की स्थापना 1979 में हुई थी, जब उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश का हिस्सा) के लिए पृथक राज्य की मांग तेज हो रही थी। यह पार्टी क्षेत्रीय अस्मिता, संस्कृति और विकास के मुद्दों को लेकर सामने आई। लंबे संघर्ष के बाद 2000 में जब उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ, तो यूकेडी को इसका श्रेय भी मिला।
लेकिन राज्य गठन के बाद यूकेडी सत्ता के संघर्ष और अंदरूनी कलह में उलझ गई। कई बार पार्टी टूटती रही, नेता बदलते रहे और पार्टी जनता के बीच अपना प्रभाव खोती गई।
2. यूकेडी की वर्तमान स्थिति
वर्तमान में यूकेडी का जनाधार बेहद सीमित हो चुका है। 2022 के विधानसभा चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन अत्यंत निराशाजनक रहा। न तो कोई सीट जीत पाई और न ही किसी क्षेत्र में उल्लेखनीय वोट प्रतिशत दर्ज कर सकी। पार्टी की गुटबाजी, विचारधारा में अस्पष्टता और संसाधनों की कमी इसकी बड़ी कमजोरियाँ रहीं।
हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद पार्टी में कुछ हलचल देखने को मिली है। युवा नेतृत्व को बढ़ावा देने और संगठन को नए सिरे से मजबूत करने की कवायद जारी है।
3. राज्य की प्रमुख राजनीतिक पार्टियों का वर्चस्व
उत्तराखंड में वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस दो मुख्य राजनीतिक दल हैं। दोनों के बीच सत्ता का सीधा मुकाबला होता रहा है। भाजपा ने 2017 और 2022 में भारी बहुमत से सरकार बनाई और अपनी पकड़ को मजबूत किया। कांग्रेस भी लगातार मुख्य विपक्षी दल बनी रही है।
इन दोनों राष्ट्रीय दलों के बीच यूकेडी जैसी क्षेत्रीय पार्टी के लिए जगह बनाना बेहद कठिन हो गया है, खासकर तब जब जनता की प्राथमिकता स्थिर और संसाधनयुक्त सरकार बन गई है।
4. यूकेडी के सामने प्रमुख चुनौतियाँ
जनाधार की कमी: यूकेडी के पास आज न तो बड़े चेहरे हैं, न ही व्यापक जनाधार।
गुटबाजी: पार्टी के भीतर वर्षों से चली आ रही आपसी खींचतान आज भी खत्म नहीं हुई है।
संगठनात्मक कमजोरी: जमीनी स्तर पर संगठन की पकड़ बेहद कमजोर है।
राजनीतिक रणनीति की कमी: यूकेडी अब भी स्पष्ट रणनीति नहीं बना पाई है कि वह भाजपा और कांग्रेस से अलग क्या दे सकती है।
युवा और नए मतदाताओं से दूरी: आज का युवा यूकेडी से परिचित नहीं है। वह भाजपा या कांग्रेस को ही विकल्प मानता है।
5. संभावनाएँ और अवसर
हालांकि चुनौतियाँ बड़ी हैं, लेकिन यूकेडी के पास कुछ अवसर भी हैं, जिनका सही उपयोग किया जाए तो पार्टी फिर से सक्रिय भूमिका में आ सकती है:
क्षेत्रीय मुद्दों पर फोकस: जल-जंगल-ज़मीन, पलायन, बेरोजगारी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे स्थानीय मुद्दों को प्रमुखता दी जाए।
युवाओं को जोड़ना: सोशल मीडिया और युवाओं के माध्यम से पार्टी को फिर से लोकप्रिय बनाया जा सकता है।
स्वच्छ और ईमानदार छवि: अगर पार्टी भ्रष्टाचार-विरोधी, पारदर्शी और विकासोन्मुख छवि प्रस्तुत करे तो जनता भरोसा कर सकती है।
गठबंधन की राजनीति: यदि यूकेडी छोटे दलों या निर्दलीयों के साथ तालमेल बनाकर चले, तो कुछ सीटों पर बेहतर प्रदर्शन किया जा सकता है।
6. क्या 2027 में यूकेडी कमाल कर पाएगी?
यह सवाल जितना सरल लगता है, उतना ही जटिल है। यदि यूकेडी आने वाले दो वर्षों में निम्नलिखित कार्य कर सके तो वह एक बार फिर राजनीतिक रूप से प्रासंगिक बन सकती है:
स्पष्ट वैचारिक दिशा तय करे: पार्टी को यह तय करना होगा कि वह किन मूल मुद्दों पर जनता के बीच जाएगी और उसका विजन क्या है।
नई टीम तैयार करे: जमीनी कार्यकर्ताओं को बढ़ावा देकर, युवाओं और महिलाओं को आगे लाकर संगठन को जीवंत करना होगा।
निरंतर जनसंपर्क अभियान: गांव-गांव जाकर जनता से संपर्क बढ़ाना होगा, खासकर उन क्षेत्रों में जहां कभी पार्टी मजबूत थी।
डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सक्रियता: फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम जैसे माध्यमों पर अपनी उपस्थिति मजबूत करनी होगी।
विश्वसनीय चेहरों को आगे लाना: पार्टी के पास जो ईमानदार और संघर्षशील नेता हैं, उन्हें मंच पर लाना होगा।
7. निष्कर्ष
उत्तराखंड क्रांति दल का अतीत गौरवशाली है लेकिन वर्तमान कमजोर। यदि पार्टी अपनी गलतियों से सबक लेकर आत्मनिरीक्षण करे, संगठन को मजबूत बनाए, जनता के मुद्दों को मजबूती से उठाए और एकजुट होकर चुनावी मैदान में उतरे — तो 2027 के विधानसभा चुनाव में यूकेडी ‘कमाल’ न सही, लेकिन ‘संभावनाओं की वापसी’ जरूर कर सकती है।
राज्य की जनता आज भी उस विकल्प की तलाश में है जो न तो भ्रष्टाचार में लिप्त हो और न ही वादाखिलाफी में। अगर यूकेडी खुद को उस विकल्प के रूप में स्थापित कर पाती है, तो 2027 यूकेडी के पुनर्जन्म का साल साबित हो सकता है।
#RajBisht
मोदी जैसे विराट एवं विशाल व्यक्तित्व के समय सम्पूर्ण भारत में वर्तमान समय में किसी भी पार्टी का अस्तित्व नहीं है वर्तमान समय में 19, राज्य में भाजपा की सरकार है,14,17,19,22,, की स्थिति आज आप लोगों के ही समक्ष है
ReplyDeleteभाई साहब यूकेडी में तो एक से बढ़कर एक ईमानदार, कर्मठ, विद्वान, विचारक, और नियम कानून बनाने की सोच रखने वाले लोग हैं अच्छे जनाधार वाले भी हैं, परंतु धन बल की कमी के कारण सुसुप्त हैं। मीडिया भी बीजेपी और कांग्रेस को ही दिखती है जबकि यूकेडी सतत उत्तराखंड के मुद्दों को उठाती रहती है।
ReplyDeleteबात तो सही है भाई जी
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