आज के डिजिटल युग में मोबाइल पर खेले जाने वाले फैंटेसी स्पोर्ट्स ऐप्स जैसे ड्रीम11, MPL, My11Circle, और अन्य ने भारत समेत पूरे विश्व में बड़ी लोकप्रियता हासिल की है। ये ऐप्स उपयोगकर्ताओं को क्रिकेट, फुटबॉल, कबड्डी आदि खेलों में अपनी "काल्पनिक" (फैंटेसी) टीम बनाने और उसमें प्रदर्शन के आधार पर पुरस्कार जीतने का अवसर देते हैं। परंतु एक सवाल अक्सर उठता है: क्या ये ऐप जुए की श्रेणी में आते हैं? और अगर नहीं, तो क्यों नहीं कहलाते?
इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि फैंटेसी ऐप जुआ क्यों नहीं कहे जाते, इनके कानूनी पहलू क्या हैं, और आम लोगों को इनसे जुड़े जोखिमों को कैसे समझना चाहिए।
1. फैंटेसी गेम और जुए में अंतर क्या है?
सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि जुआ (gambling) और कौशल-आधारित खेल (game of skill) में क्या अंतर है।
जुआ एक ऐसा खेल होता है जिसमें परिणाम पूरी तरह भाग्य (लॉटरी, डाइस, स्पिन) पर आधारित होता है।
कौशल-आधारित खेल में खिलाड़ी की समझ, विश्लेषण, और निर्णय क्षमता से परिणाम प्रभावित होता है।
फैंटेसी स्पोर्ट्स को "कौशल आधारित खेल" की श्रेणी में रखा गया है, क्योंकि:
उपयोगकर्ता को वास्तविक खिलाड़ियों के प्रदर्शन, उनकी हाल की फॉर्म, मैदान की परिस्थिति, और टीम के संयोजन के आधार पर टीम चुननी होती है।
यदि कोई व्यक्ति नियमित रूप से अच्छा प्रदर्शन करता है, तो वह बेहतर स्कोर कर सकता है—यानि केवल भाग्य से नहीं, बल्कि जानकारी और रणनीति से।
2. भारत में फैंटेसी ऐप के कानूनी पहलू
भारत में जुए पर नियंत्रण के लिए केंद्र और राज्य सरकारें कानून बनाती हैं। जुआ अधिनियम, 1867 के अनुसार भारत में जुए की गतिविधियाँ गैरकानूनी मानी जाती हैं, परंतु इसमें कौशल-आधारित खेलों को छूट दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने भी यह स्पष्ट किया है कि फैंटेसी गेम्स जैसे Dream11 "कौशल आधारित खेल" हैं और उन्हें जुए की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। जैसे:
2017 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि Dream11 एक कौशल आधारित प्लेटफॉर्म है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी इन निर्णयों को समर्थन दिया।
हालांकि कुछ राज्य जैसे तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना आदि ने अस्थायी रूप से इन ऐप्स पर बैन लगाया, परंतु बाद में कई राज्यों में कोर्ट ने यह बैन हटाया।
3. फैंटेसी ऐप्स में कितना होता है कौशल?
जब आप किसी फैंटेसी लीग में हिस्सा लेते हैं, तो आपको:
खिलाड़ियों की स्टैटिस्टिक्स देखनी होती है।
पिच रिपोर्ट, मौसम की जानकारी और संभावित प्लेइंग XI को समझना होता है।
कप्तान और उप-कप्तान चुनना होता है जो डबल या 1.5x पॉइंट्स देते हैं।
यह सभी निर्णय यदि सोच-समझकर लिए जाएँ, तो उपयोगकर्ता बेहतर रैंक प्राप्त कर सकता है। यही कारण है कि इसे भाग्य के बजाय "कौशल और रणनीति आधारित" माना जाता है।
4. सरकार और नियामक संस्थानों की भूमिका
फैंटेसी स्पोर्ट्स को विनियमित करने के लिए अब भारत सरकार और नीति आयोग ने भी रुचि दिखाई है। फेडरेशन ऑफ इंडियन फैंटेसी स्पोर्ट्स (FIFS) जैसी संस्थाएँ इन ऐप्स के लिए आचार संहिता तैयार करती हैं।
2023 में भारत सरकार ने "ऑनलाइन गेमिंग के लिए सेल्फ रेग्युलेटरी बॉडीज़" के निर्माण की बात की, ताकि सभी ऐप्स पारदर्शिता और उपभोक्ता सुरक्षा के नियमों का पालन करें।
5. फैंटेसी ऐप्स से जुड़े जोखिम और सावधानियाँ
हालांकि ये ऐप कानूनी तौर पर जुआ नहीं हैं, फिर भी इनमें कुछ जोखिम हैं:
आर्थिक नुकसान: यदि उपयोगकर्ता बार-बार पैसे लगाता है और हारता है, तो यह आदत बन सकती है।
लत लगने का खतरा: जीत की उम्मीद में लोग बार-बार खेलते हैं, जो एक आदत बन सकती है।
भ्रम की स्थिति: आम जनता में अब भी यह समझ नहीं बन पाई है कि ये ऐप जुआ नहीं हैं।
इसलिए जरूरी है कि उपयोगकर्ता खुद सीमित बजट में, सोच-समझकर और मनोरंजन के उद्देश्य से ही इनका उपयोग करें।
6. निष्कर्ष: क्या फैंटेसी ऐप वास्तव में जुआ नहीं हैं?
कानूनी दृष्टिकोण से और गेम की प्रकृति के आधार पर, फैंटेसी स्पोर्ट्स ऐप्स को भारत में जुआ नहीं माना जाता, क्योंकि:
इनमें निर्णायक भूमिका उपयोगकर्ता की कौशल, जानकारी और रणनीति की होती है।
कोर्ट के निर्णय इन्हें वैध मानते हैं।
सरकार भी इन्हें विनियमित करने के प्रयास कर रही है, न कि प्रतिबंधित करने के।
परंतु आम उपयोगकर्ता को यह समझना आवश्यक है कि यह "कौशल आधारित खेल" हैं, परंतु अगर इनका दुरुपयोग किया जाए या इनसे लत लग जाए, तो आर्थिक और मानसिक हानि संभव है।
अंततः, फैंटेसी स्पोर्ट्स ऐप एक डिजिटल युग का नया कौशल खेल हैं, जो जुए की श्रेणी में नहीं आते — बशर्ते इन्हें सही दृष्टिकोण और सीमाओं में रहकर खेला जाए।
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