हिण्डोलाखाल कम्युनिटी हेल्थ सेंटर की दयनीय स्थिति : एक चिकित्सा व्यवस्था की अनदेखी की कहानी
उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में स्थित हिण्डोलाखाल क्षेत्र न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, बल्कि यहाँ के निवासियों की सरलता और मेहनत की मिसालें भी दी जाती हैं। लेकिन इस क्षेत्र के लोगों को एक ऐसी समस्या का सामना करना पड़ रहा है, जो उनकी बुनियादी जरूरतों में से एक — स्वास्थ्य सेवा — से जुड़ी है। हिण्डोलाखाल का कम्युनिटी हेल्थ सेंटर (सीएचसी) वर्षों से उपेक्षा का शिकार रहा है और आज इसकी स्थिति इतनी दयनीय हो चुकी है कि ग्रामीणों को साधारण जांचों के लिए भी 60 किलोमीटर दूर श्रीनगर तक का सफर तय करना पड़ता है।
चिकित्सा सुविधाओं का अभाव: एक्सरे और अल्ट्रासाउंड जैसी बुनियादी सेवाओं का न होना
एक्सरे और अल्ट्रासाउंड जैसी सामान्य सुविधाएँ आज के समय में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) में भी उपलब्ध होती हैं। लेकिन हिण्डोलाखाल के सीएचसी में यह सुविधाएं नदारद हैं। किसी भी व्यक्ति को जब हड्डी टूटने, आंतरिक चोट, या पेट दर्द जैसी समस्याएं होती हैं, तो डॉक्टर बिना एक्सरे या अल्ट्रासाउंड के सही निदान नहीं कर सकते। ऐसी स्थिति में मरीजों को मजबूरन श्रीनगर रेफर किया जाता है, जो हिण्डोलाखाल से करीब 60 किलोमीटर दूर है।
यह दूरी केवल किलोमीटरों में नहीं है, बल्कि यह एक बीमार व्यक्ति की परेशानी, उसके परिजनों की चिंता और आर्थिक बोझ को भी दर्शाती है। रास्ते की खराब स्थिति, परिवहन के सीमित विकल्प और आपातकालीन स्थिति में मिलने वाली देरी, मरीज की जान पर भारी पड़ सकती है।
आपातकालीन सेवाओं की कमी
हिण्डोलाखाल सीएचसी में न तो 24 घंटे की आपातकालीन सेवाएं उपलब्ध हैं, न ही प्रशिक्षित विशेषज्ञ डॉक्टर मौजूद हैं। यहाँ अक्सर एक या दो सामान्य चिकित्सकों के भरोसे पूरी आबादी की स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा करने की कोशिश की जाती है। रात के समय या गंभीर स्थिति में मरीजों को या तो श्रीनगर या फिर ऋषिकेश अस्पताल ले जाना पड़ता है।
हाल ही में एक गर्भवती महिला को अल्ट्रासाउंड जांच के लिए समय पर रेफर नहीं किया गया, जिससे उसकी स्थिति गंभीर हो गई। इस तरह के अनेक मामले हैं जो स्थानीय स्वास्थ्य व्यवस्था की खामियों को उजागर करते हैं।
स्वास्थ्य केंद्र की जर्जर संरचना और संसाधनों की कमी
हिण्डोलाखाल का सीएचसी केवल नाम का ‘कम्युनिटी हेल्थ सेंटर’ है। भवन की स्थिति जर्जर है, कई कमरों में सीलन, टूटी खिड़कियाँ, और स्वच्छता की भारी कमी है। बेड की संख्या सीमित है, और जो उपलब्ध हैं वे भी पुराने और खराब हालत में हैं। न तो ICU की सुविधा है, न ही पर्याप्त ऑक्सीजन सिलेंडर या मॉनिटरिंग उपकरण। यहां तक कि कई बार साधारण दवाइयाँ भी उपलब्ध नहीं होतीं।
लैब तकनीशियन, रेडियोलॉजिस्ट और फार्मासिस्ट जैसे आवश्यक स्टाफ की भारी कमी है। अधिकांश समय स्टाफ की तैनाती केवल कागजों में होती है। यह व्यवस्था ना केवल मरीजों के लिए नुकसानदायक है, बल्कि डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए भी चुनौतीपूर्ण है, जो सीमित संसाधनों में सेवा देने की कोशिश करते हैं।
जनता की आवाज: स्थानीय लोग क्या कहते हैं?
स्थानीय ग्रामीणों की पीड़ा शब्दों में बयां करना कठिन है। एक ग्रामीण, रमेश सिंह बताते हैं —
"मुझे पीठ में बहुत तेज दर्द था। डॉक्टर ने एक्सरे करवाने को कहा, लेकिन यहाँ मशीन नहीं है। श्रीनगर जाने में 3 घंटे लगे और 1000 रुपये खर्च हो गए। गरीब आदमी इलाज करवाए या अपने बच्चों को खिलाए?"
ऐसे ही एक और निवासी, रीना देवी कहती हैं —
"हम औरतों को सबसे ज़्यादा परेशानी होती है। गर्भावस्था के समय अल्ट्रासाउंड बहुत जरूरी होता है, लेकिन यहाँ सुविधा नहीं है। हमें हर बार श्रीनगर जाना पड़ता है, वो भी खराब रास्तों से। कई बार तो महिलाएं रास्ते में ही प्रसव कर देती हैं।"
सरकार और प्रशासन की भूमिका
उत्तराखंड सरकार और स्वास्थ्य विभाग समय-समय पर स्वास्थ्य सेवाओं के सुधार के दावे करते हैं। योजनाओं और बजट की घोषणाएं अखबारों की सुर्खियाँ बनती हैं, लेकिन हिण्डोलाखाल जैसे क्षेत्रों में उनका असर दिखाई नहीं देता।
2019 में घोषित “हर गांव स्वास्थ्य सुविधा” योजना का भी यहाँ कोई ठोस लाभ नहीं दिखा। कोई एक्सरे मशीन नहीं आई, कोई प्रशिक्षित तकनीशियन नहीं भेजा गया। प्रशासनिक उपेक्षा और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
समाधान क्या हो सकते हैं?
बुनियादी ढांचे में सुधार: सीएचसी के भवन की मरम्मत, बेड की संख्या में वृद्धि, और स्वच्छता की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।
मशीनों की व्यवस्था: एक्सरे और अल्ट्रासाउंड मशीनें प्राथमिकता से उपलब्ध करवाई जाएं। इसके साथ प्रशिक्षित तकनीशियन की नियुक्ति की जाए।
डॉक्टरों और स्टाफ की तैनाती: नियमित रूप से विशेषज्ञ डॉक्टरों का दौरा करवाया जाए, और स्थायी स्टाफ की तैनाती हो।
आपातकालीन सेवाएं: 24x7 आपातकालीन सेवा के लिए एम्बुलेंस, ऑक्सीजन और प्राथमिक चिकित्सा उपकरण उपलब्ध कराए जाएं।
जनभागीदारी: स्थानीय पंचायत और जनता की भागीदारी से एक निगरानी समिति बनाई जाए, जो सीएचसी की सेवाओं की गुणवत्ता की निगरानी कर सके।
निष्कर्ष
हिण्डोलाखाल का कम्युनिटी हेल्थ सेंटर न केवल एक स्वास्थ्य केंद्र है, बल्कि यह यहाँ की हजारों लोगों की जीवनरेखा भी है। इसकी दयनीय स्थिति एक बहुत बड़ी चिंता का विषय है। जब तक यहाँ बुनियादी सुविधाएं, प्रशिक्षित स्टाफ, और आपातकालीन सेवाएं नहीं दी जातीं, तब तक इस क्षेत्र के लोगों को अनावश्यक पीड़ा सहनी पड़ेगी।
सरकार, स्वास्थ्य विभाग और जनप्रतिनिधियों को इस दिशा में त्वरित कदम उठाने होंगे, ताकि “स्वस्थ उत्तराखंड” का सपना सिर्फ शहरी इलाकों तक ही सीमित न रह जाए, बल्कि हिण्डोलाखाल जैसे सुदूर गांवों तक भी इसका लाभ पहुंचे।
#राजबिष्ट।