Thursday, August 24, 2023

दोस्तों पलायन पर एक छोटी सी कविता लिखी है पसंद आये तो कमेंट करके बताना और शेयर भी करना

 गांव घर सब छोड़ दिये तुमने खाली बंजर और वीरान।

बंद तालों से गांव बंद पड़े हैं बंद पड़े हैं सब मकान।

ठान लिया था तुमने गांव का स्वर्ग छोड़ तुम्हे शहर ही जाना है।

पर शुकून से जीने तुम्हे कभी न कभी घर वापिस पहाड़ ही आना है।

हां शहर पहुंचकर वहां की चकाचौंध तुम्हे खा गयी होगी।

बनावटी चेहरों की बनावटी हंसी तुम्हे भा गयी होगी।

खरीदकर वो मिलावटी खाना तुम चाव से खा रहे होंगे।

स्वादिष्ट खाने के नाम पर कई बीमारियां खुद में ला रहे होंगे।

इन दिखावटी खाने की बीमारियों से तुम्हे खुद को अब बचाना है।

शुकून से जीने तुम्हे कभी न कभी घर वापिस पहाड़ ही आना है।

शहर में बड़े नौकर बन इतना क्यों तुम इतराते हो।

गांव में छोटे ही सही खुद मालिक हैं उन्हें कहाँ तुम समझ पाते हो।

कल क्या होगा यही सोच सोचकर तुम अपना दिन बिताते हो।

गांव की वो चैन वाली नींद अब तुम कहाँ शहर में सो पाते हो।

शहर में शुकून वाली नींद अब तुम्हारे लिए सपने जैसा हो जाना है।

शुकून से जीने तुम्हे कभी न कभी घर वापिस पहाड़ ही आना है।


बेकार की शहरी मुसीबतों से तुम अब पछता रहे होंगे।

वापस गांव आने की सोच कहीं न कहीं मन मे बना रहे होंगे।

बचपन मे गांव की मस्तियाँ याद कर तुम अभी की परेशानियां भुला रहे होंगे।

गांव वाला शुकून मिल जाये बस यही बाते तुम खुद को समझा रहे होंगे।

सोचते हो अब की शहर की सारी मुसीबतों को शहर में ही छोड़ जाना है।

शुकून से जीने तुम्हे कभी न कभी घर वापिस पहाड़ ही आना है।।


इन पंक्तियों को चुभने वालो को और भी चुभाना है।

तभी तो छोड़कर ये दिखावटी दुनिया गांव में ही स्वर्ग बनाना है।

जन्नत है गांव पहाड़ो में ये पाठ अब सबको पढाना है।

पहाड़ की खुशियों की रौनक से अब सबको जगमगाना है।

जिंदगी कैसे मस्त है पहाड़ में ये सबको बताना है।

भटक कर जो चले गए गांव पहाड़ो से दूर उन्हें घर वापिस लाना है।

याद रहे सबको शुकून से जीने कभी न कभी घर वापिस पहाड़ ही आना है।

#राज बिष्ट।

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